Jute Ki Kheti Kiase Kare

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Jute Ki Kheti Kiase Kare | Jute Farming In Hindi | Jute Cultivation | jute plant | jute crop: जूट की खेती कैसे होती है

यदि आप भी Jute ki kheti करना चाहते हैं तो इस लेख में जूट की खेती कैसे करें तथा जूट की खेती की जानकारी- वर्षा, विशेषताएँ के बारे में विशेष जानकारी दी जा रही है। जूट के बीज को खेत में बोने से पहले बीज का शोधन कर लें, ताकि फसल पर कोई रोग न लगे. इसके लिए उन्हें थीरम या कार्बेन्डाजिम से उपचारित करें।

Jute Ki Kheti Kiase Kare में उपयुक्त भूमि (Jute Cultivation Land Suitable)

Jute Ki Kheti Kiase Kare हल्की रेतीली मिट्टी में उगाया जाता है, जल जमाव वाली मिट्टी में नहीं। क्योंकि पौधा जितना अधिक समय तक गीला रहता है, उतना ही अधिक खराब होने लगता है। खेती के लिए भूमि सामान्य P.H. मान वाली हो | जूट का पौधा आद्र और गर्म जलवायु वाला होता है |

इस कारण इसके पौधों को सामान्य बारिश की आवश्यकता होती है. लेकिन असमान वर्षा से फसल को नुकसान होता है। जूट की खेती गर्मी और बरसात के मौसम में की जाती है और इस कारण फसल पर सर्दी का असर नहीं देखा जाता है।

जूट के पौधे 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान सीमा में अंकुरित होते हैं और अंकुरण के बाद 35 डिग्री सेल्सियस तक तापमान का सामना कर सकते हैं।

Jute ki kheti की उन्नत किस्में (Jute Improved Varieties)

वर्तमान समय में जूट की कई उन्नत किस्में उगाई जा रही हैं। जिसे दो प्रकार में बांटा गया है. इसका फल कटाई, बुआई और तैयारी पर निर्भर करता है।

कैपसुलेरिस प्रजाति (Capsularis Species)

एन.डी.सी.

यह किस्म मैदानी इलाकों में बड़े पैमाने पर उगाई जाती है, और पूरे भारत में भी उगाई जाती है। इस किस्म को फरवरी से मध्य मार्च तक बोया जा सकता है, जिससे 12 से 15 मन तक उपज मिलती है।

जे.आर.सी. – 321

यह जूट कम समय में पककर अपने आप तैयार हो जाता है। जिसकी प्रति हेक्टेयर उपज 10 से 15 मन होती है। इसके अनुपात में 20% नमीपाया जाता है। उसके पौधे 5 महीने बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं.

जे.आर.सी – 212

ये किस्में मध्यम और ऊँची भूमि में उगाई जाती हैं। ये किस्में 5 महीने में फसल के लिए तैयार हो जाती हैं। इससे प्रति एकड़ खेत में 10 मन उपज होती है। इसके पौधों की बुआई मार्च माह में करने से अच्छी फसल और आय प्राप्त की जा सकती है.

यू.पी.सी. – 94

इसे रेशमा नाम से भी जाना जाता है। इसका पौधे 120 से 140 दिनों के बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं और पौधे का निचला हिस्सा अधिक उपज देता है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर भूमि पर 12 मन उपज देती है।

ओलीटोरियस प्रजाति (Olitorius Species)

जे.आर.ओ. – 632

ये किस्में ऊंची जमीन पर उगाई जाती हैं जो देरी से तैयार होती है इसके बीज अप्रैल से मध्य मई तक बोए जाते हैं. अगर आप इसकी फसल सही तरीके से लगाएंगे तो आपको हर हेक्टेयर खेत से 22 मन फसल मिलेगी. ये किस्में 10 फीट से अधिक लंबाई वाले उच्च गुणवत्ता वाले फाइबर का उत्पादन करती हैं।

जे.आर.ओ. – 878

इस क़िस्म की जूट को किसी भी तरह की भूमि में ऊगा सकते है | इसका पौधा तक़रीबन 130 दिन में कटाई के लिए तैयार हो जाता है | . प्रति हेक्टेयर उपज 15 से 20 तक होती है। इसके पौधे जल्दी फूल आने को सहन कर लेते हैं, इसलिए रेशों की गुणवत्ता उत्कृष्ट होती है।

Jute ki kheti की तैयारी (Jute Cultivation Preparation)

Jute ki kheti करने से पहले उसकी भूमि को ठीक से जरूर तैयार कर ले| खेत जितनी अच्छी तरह से तैयार होगा, पैदावार भी उतनी अच्छी मिलेगी | भूमि तैयार करते समय हलो से गहरी जुताई कर खेत को ऐसे ही खुला छोड़ दे |

परिणामस्वरूप, सूर्य का प्रकाश पृथ्वी की गहराई तक पहुँचता है। इसके बाद गोबर की खाद डालें और कल्टीवेटर लगाकर दो से तीन तिरछी जुताई करें.

इस तरह, खाद मिट्टी में अच्छी तरह मिल जाएगी, जिसे बाद में पानी दिया जाएगा। पानी देने के कुछ दिन बाद यदि खरपतवार दिखाई देने लगे तो रोटावेटर से जुताई करा लें। इससे मिट्टी जम जाएगी और टूट जाएगी। नम मिट्टी में बीजों की अंकुरण क्षमता बढ़ जाती है और बीज अच्छे से विकसित होते हैं।

Jute ki kheti के बीजो की रोपाई का समय और तरीका (Jute Seeds Transplanting Method and Time)

Jute ki kheti के बीजो की रोपाई बीज के रूप में गेहू और बाजरे की तरह छिड़काव और ड्रिल विधि द्वारा किया जाता है | छिड़काव विधि में बीजो को जुते हुए समतल खेत में छिड़ककर हल्की जुताई क़र मिट्टी में बीजो को मिला दिया जाता है |इसके अलावा ड्रिल द्वारा रोपाई के लिए बीजों को क्रम से बोया जाता है।

इस स्थिति में, बीज को पंक्ति से पंक्ति की दूरी पर 5 से 7 सेमी की दूरी पर बोया जाता है। ऐसे में एक हेक्टेयर खेत में 4 से 5 किलोग्राम बीज बोया जाता है और 6 से 7 किलोग्राम बीज स्प्रिंकलर विधि से बोया जाता है.

जूट के बीज किस्म और पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुसार फरवरी से जून और मध्य जुलाई तक बोए जा सकते हैं। सही समय पर बुआई करने से आपको अच्छे परिणाम मिल सकते हैं. जूट के बीज को खेत में बोने से पहले बीज का शोधन कर लें, ताकि फसल पर कोई रोग न लगे. इसके लिए उन्हें थीरम या कार्बेन्डाजिम से उपचारित करें।

उर्वरक की मात्रा (Fertilizer Amount)

जूट की फसल से अधिकतम उपज के लिए खेत में पर्याप्त उर्वरक उपलब्ध कराना चाहिए। इस कारण जब खेत की पहली जुताई की जाती है तो 25 से 30 टन सड़ा हुआ गोबर मिट्टी में अच्छी तरह मिल जाता है। किसान भाई जैविक खाद के साथ-साथ रासायनिक खाद का भी इस्तेमाल क़र सकते है | 

इसके लिए बस आखिरी जुताई के समय 90 किलोग्राम नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश 2:1:1 के अनुपात में दें. इसके अलावा नाइट्रोजन की आधी मात्रा दो दरों में सिंचित पौधों के साथ दें.

Jute ki kheti में वर्षा (Jute Cultivation Rain)

जूट के पौधों को बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है. क्योंकि इसके बीज पूरे भारत में वर्षा ऋतु में बोये जाते हैं। मार्च से जून तक के महीने बारिश वाले होते हैं। हालाँकि, यदि समय पर बारिश नहीं होती है, तो खेत में नमी बनाए रखने के लिए सिंचाई की आवश्यकता होती है।

जूट खरपतवार नियंत्रण (Jute Weed Control)

इसकी फसल को खरपतवारों से भी बचाना चाहिए. जूट की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए खरपतवारों की कटाई करनी चाहिए। इसके पौधों पर पहली निराई-गुड़ाई पौधों के लगभग एक फुट लंबे होने के 25 से 30 दिन बाद करें।

इसके बाद 15 से 20 दिन के अंतराल पर गुड़ाई करें. इसके अलावा रासायनिक विधि से पौधों पर पर्याप्त मात्रा में पेंडीमेथिलीन या फ्लूक्लोरेलिन का छिड़काव करना चाहिए.

Jute ki kheti के पौधों में लगने वाले रोग एवं उपचार (Jute Plants Diseases and Treatment)

लिस्ट्रोनोटस बोनियारेंसिस किट

यह एक कीट रोग है, जिसका आक्रमण जूट के पौधों पर अक्सर देखा जाता है। यह कीट रोग पौधे की पत्तियों के शीर्ष पर स्थित नाजुक शाखाओं को नुकसान पहुँचाता है।

इसके बाद पौधा पूरी तरह से बढ़ना बंद कर देता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर हर महीने नीम के रस या तेल का छिड़काव करें. इसके अलावा यदि पौधे पर रोग का प्रकोप शुरुआत में दिखाई दे तो डाइकोफाल का छिड़काव करें.

जड़ और तना सड़न

यह रोग Jute ki kheti में पानी भर जाने पर होता है। संक्रमित होने पर पौधे की पत्तियाँ पीली होकर सूखने लगती हैं तथा कुछ ही दिनों में पौधा मुरझाकर मरने लगता है।

इस रोग से बचने के लिए बीजों को गोमूत्र या ट्राइकोडर्मा से उपचारित करके खेत में लगाना चाहिए. हालाँकि, यदि रोग पौधों पर दिखाई दे तो उनकी जड़ों पर ट्राइकोडर्मा विरिडी का छिड़काव करें।

Jute ki kheti के पौधों से रेशे निकालना (Jute Plants Fiber Removal)

Jute ki kheti के पौधों से रेशे निकालने के लिए रेशों को 20 से 25 दिनों तक पानी में भिगोना पड़ता है। इसके बाद इन्हें बाहर निकाल लिया जाता है और सड़ चुके पौधों से रेशे निकाल कर ताजे धुले पानी से धो लिया जाता है।

इन साफ रेशो को सुखाने के लिए खुली धूप में किसी लकड़ी पर तीन से चार दिन के लिए रख देते है | इस दौरान धूप में रखे रेशो को पलटते रहना चाहिए |

ताकि रेशो में नमी की मात्रा बिल्कुल कम बचे। क्योंकि अधिक नमी रेशो को नुकसान पहुंचाती है। इसके बाद इन सूखे रेशों को बंडल बनाकर संग्रहित किया जाता है। क्योंकि लंबे समय तक फैले हुए रेशे भंगुर हो जाते हैं और उनकी गुणवत्ता कम हो जाती है। इस कारण बाजार में अच्छे दाम भी नहीं मिल रहे हैं।

जूट की पैदावार और लाभ (Jute Production and Benefits)

जूट के पौधों को तैयार होने में 120 से 150 दिन का समय लगता है. इस बीच पौधे के सावधानीपूर्वक प्रबंधन से एक एकड़ खेत से 30 से 35 मन उपज प्राप्त की जा सकती है, जिससे किसान को अपनी एक बार की फसल से लगभग 60 से 80 हजार रुपये प्राप्त हो सकते हैं।

Jute Ki Kheti Kiase Kare FaQ

Q. भारत में जूट कहाँ उगाया जाता है?

Ans. पश्चिम बंगाल, असम, उड़ीसा, बिहार, उत्तर प्रदेश, त्रिपुरा और मेघालय के लगभग 83 जिलों में उगाई जाती है।

Q. जूट का सबसे बड़ा उत्पादक देश कौन सा है?

Ans. बांग्लादेश

Q. जूट की फसल कब बोई जाती है?

Ans. अगस्‍त-सितम्‍बर का मौसम सही होता है। लेकिन खेत की स्थिति तथा बीज की किस्‍म के आधार पर मार्च-अप्रैल में भी इसकी बुआई की जाती है।

Q. जूट किस पौधे से बनता है?

Ans. सफेद जूट के पौधे (कोरकोरस कैप्सुलरिस) की छाल से और कुछ हद तक टॉसा जूट (सी. ऑलिटोरियस)

Q. जूट को कौन सी मिट्टी चाहिए?

Ans. जलोढ़ या दोमट

Q. Jute ki khetiके लिए कौन सी मिट्टी सबसे अच्छी होती है?

Ans. जलोढ़ मिट्टी

Q. क्या Jute ki kheti काली मिट्टी में उग सकता है?

Ans. नहीं

Q. जूट किस क्षेत्र में उगाया जाता है?

Ans. पश्चिम बंगाल, बिहार और असम में

 

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