Tori Ki Kheti Kaise Kare

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Tori Ki Kheti Kaise Kare | Ridge Gourd Farming in Hindi | तोरई की खेती कब और कैसे करें | तोरई की खेती का समय

Tori ki khetiके लिए बरसात का मौसम आदर्श है।Tori Farmingखरीफ फसलों के साथ भी की जा सकती है। अगर आप भीTori ki khetiकरना चाहते हैं तो इस लेख में आपकोRidge Gourd ki khetiकब और कैसे करें (Ridge Gourd फ़ार्मिंग इन हिंदी) और तोरईकी खेती कब करें के बारे में जानकारी दी जा रही है।

Tori ki kheti के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान (Ridge Gourd Suitable Soil, Climate and Temperature)

Tori ki khetiकी अच्छी फसल के लिए कार्बनिक पदार्थों से भरपूर उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसकी खेती के लिए उपयुक्त जल निकास वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है. पी.एच. जो सामान्य है. मूल्यवान भूमि पर जोर दिया जाना चाहिए। इसकी खेती के लिए गर्म जलवायु उपयुक्त मानी जाती है.

इसके पौधों को पनपने के लिए शुष्क, ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है। इसके पौधे ठंडे मौसम को सहन नहीं कर पाते. इसके पौधे वसंत ऋतु में पनपते हैं। तोरी के पौधे मध्यम तापमान में पनपते हैं। इसके पौधे अधिकतम तापमान 35 डिग्री तक ही सहन कर सकते हैं.

Tori ki kheti की उन्नत किस्में (Luffa Improved Varieties)

कोयम्बूर2

यह किस्मबीज प्रतिस्थापन के लगभग 70 दिन बाद उत्पादन देना शुरू कर देता है। इस मामले में, पौधे का फल आकार में संकीर्ण होता है और इसमें कम बीज होते हैं। इस किस्म की उपज 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

घिया तोरई

इसके पौधे में लगने वाला फल गहरे हरे रंग का होता है, जो घिया के छोटे घियाजैसा होता है। यह किस्म भारत में व्यापक रूप से उगाई जाती है, जहाँ इसकी छाल पतली होती है। इसके ताजे फल विटामिन से भरपूर होते हैं।

पूसा नसदार

तोरईकी इन किस्मों में बीज रोपाईके 80 दिनों के बाद फूल आना शुरू हो जाते हैं, उभरते फलों पर उभरी हुई धारियाँ दिखाई देने लगती हैं। यह फल हल्के हरे और पीले रंग का होता है। इस किस्म को जायद फसल के रूप में उगाया जाता है.

सरपुतिया

बीज बोने के बाद इन तोरईको समायोजित होने में दो महीने लगते हैं। इसके अंकुरण से फल आकार में छोटे और गुच्छों में लगते हैं। फल पर क्षैतिज रेखाएं देखी जा सकती हैं और बाहरी परत मोटी और सख्त होती है। इनमें से अधिकतर किस्में मैदानी इलाकों में उगाई जाती हैं।

Tori ki kheti की तैयारी और उवर्रक (Luffa Field Preparation and Fertilizer)

Tori ki khetiको तैयार करने के लिए सबसे पहले खेत की मिट्टी पलटने वाले हलो से गहरी जुताई कर दी जाती है | इसके बाद खेत को कुछ दिनों के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है |

इसके बाद प्रति हेक्टेयर 12 से 15 गाड़ी पुरानी खाद को प्राकृतिक खाद के रूप में खेत में जोत दिया जाता है. इस कारण खाद खेत की मिट्टी में अच्छी तरह मिल जाते हैं।

आप चाहें तो प्राकृतिक खाद के बजाय जैविक खाद के रूप में कम्पोस्ट खाद का भी उपयोग कर सकते हैं। एक बार जब खाद मिट्टी में मिल जाती है, तो रोटावेटर का उपयोग करके खेत की जुताई की जाती है।

इसके बाद अंतिम जुताई के समय उर्वरक के रूप में एनपीके मिलाया जाता है। खेत में 100 से 125 किलोग्रामकी मात्रा को खेत में छिड़कना होता है | .

इसके बाद खेत को समतल कर लिया जाता है.Tori ki khetiके लिए पर्याप्त जगह उपलब्ध कराते हुए धोरेनुमा कारियो की मरम्मत की गई है। इसके बाद पौधों के बढ़ने पर 15 किलोग्राम यूरिया डालना चाहिए। इससे पौधे अच्छे से विकास करते हैं.

Tori ki kheti के बीजो की रोपाई का सही समय और तरीका (Luffa Seeds Sowing Right time and Method)

Tori ki khetiके बीजो की रोपाई बीज और पौध दोनों ही रूप में की जाती है,किन्तु अधिकतर किसान भाई इसकी रोपाई बीज के रूप में ही करना पसंद करते है |

पौध के रूप में रोपाई करने में काफी समय और खर्च लगता है। इसके अलावा पौधे नर्सरी से भी खरीदे जा सकते हैं. खेत में बुआई से पहले, रेपसीड बीजों को थीरम या बाविस्टिन की उचित खुराक से उपचारित किया जाता है।

इससे बीज जल्दी रोग से मुक्त हो जाते हैं. एक हेक्टेयर तुरई के खेत के लिए दो से तीन पाउंड बीज की आवश्यकता होती है। पौधा लाने के लिए खेत में धौरानुमा क्यारियां तैयार की जाती हैं.

तोरई के बीजों को मेड़ों में डेढ़ से दो फीट की दूरी पर बोया जाता है. ताकि यह पौधा मिट्टी की सतह पर अच्छे से फैल सके. इन तैयार क्यारियों को 3 से 4 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है।

इसके बीज खरीफ के दौरान बोये जाते हैं। अगर आप बरसात के मौसम में इसकी फसल लेना चाहते हैं तो इसके लिए आपको जनवरी के महीने में बीज बोना होगा और खरीफ के मौसम में इसकी फसल लेने के लिए जून के महीने में बीज बोना होगा।

Tori ki kheti के पौधों की सिंचाई (Luffa Plants Irrigation)

Tori ki khetiके पौधों को आवश्यकतानुसार पानी दिया जाता है. यदि इसके बीज जून माह में बोए गए हैं तो पहली फसल की सिंचाई बुआई के तुरंत बाद करनी चाहिए और फिर तीन से चार दिन के अंतराल पर हल्की सिंचाई करनी चाहिए,

इससे खेती करने पर ठंडक बनी रहेगी और खेत में सफलतापूर्वक खेती की जा सकेगी. इसके अलावा बरसात के मौसम में नई रोपाई करते समय पौधों को आवश्यकता पड़ने पर ही पानी देना चाहिए।

Tori ki kheti के पौधों में खरपतवार नियंत्रण (Luffa Plants Weeds Control)

Tori ki khetiके पौधों में खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई विधि का प्रयोग किया जाता है। इनके पौधों पर पहली खरपतवार बीज बोने के 15 दिन बाद बनती है.

अगली निराई-गुड़ाई पहली निराई-गुड़ाई के 15 से 20 दिन के भीतर कर देनी चाहिए। इसके अलावा यदि आप रसायनों से खरपतवारों पर नियंत्रण करना चाहते हैं तो आपको खेत में बीज बोने से पहले पर्याप्त मात्रा में बेसालिन का छिड़काव करना होगा।

Tori ki kheti के पौधों में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम (Luffa Plants Diseases and Prevention)

जड़ सड़न

इस किस्म का रोग अक्सर खेत में जलभराव की स्थिति में देखने को मिलता है |प्रभावित पौधे मिट्टी की सतह से काले पड़ जाते हैं और सड़ जाते हैं। उसके बाद पत्तियाँ पूरी तरह नष्ट हो जाती हैं।

गंभीर रूप से प्रभावित पौधे कुछ समय के बाद मुरझा कर मर जाते हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों की जड़ों पर बाविस्टिन या मैन्कोजेब की उचित मात्रा का छिड़काव किया जाता है।

मोजैक

इस किस्म का रोग तोरई के पौधों पर विषैले तरीके से हमला करता है। यह रोग पौधों की पत्तियों पर आक्रमण कर उनकी वृद्धि को पूरी तरह से रोक देता है। कुछ समय बाद पत्तियाँ सूखकर गिर जाती हैं और फल वहीं रह जाता है। इस रोग की रोकथाम के लिए सीताफल के पौधों पर नीम के तेल का छिड़काव किया जाता है.

लालड़ी

यह रोग आम तौर पर तोरई पौधों पर तब दिखाई देता है जब बीज वास्तव में अंकुरित होते हैं। यह रोग रोगज़नक़ के रूप में पुदीने के पौधे पर हमला करता है। इस रोग का कवक पौधों की जड़ों को खाकर पूरी तरह से नष्ट कर देता है।

यह परजीवी रोग दिखने में चमकीले पीले रंग का होता है। इस रोग से सीताफल के पौधों को बचाने के लिए बीज के अंकुरण के समय नीम के तेल का छिड़काव किया जाता है।

फल मक्खी

यह रोग पौधे पर फल गिरने के समय आक्रमण करता है. यह फल मक्खी रोग पौधों की पत्तियों और फलों पर अंडे देकर उन्हें नुकसान पहुँचाता है। इसके बाद फल पर पैदा होने वाले कीड़े द्वारा फल को नष्ट कर दिया जाता है।

इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर पिसे हुए नीम के पाउडर या गोमूत्र में माइक्रो झाइम मिलाकर छिड़काव किया जाता है।

Tori ki kheti के फलों की तुड़ाई, पैदावार और लाभ (Luffa Fruit Harvesting, Yield and Benefits)

तोरई की उन्नत किस्मों को बीज बोने के बाद समायोजित होने में 70 से 80 दिन का समय लगता है। इसके बीजों की कटाई कच्चे रूप में की जाती है, जिसका उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है। यदि आप बीज के रूप में फसल प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको फल पकने तक इंतजार करना होगा।

इस कारण फल की तुड़ाई सप्ताह में एक बार की जाती है। छंटाई के समय फल को डंठलसे कुछ दूरी पर तोड़ना चाहिए। इससे फल अधिक समय तक ताजा रहता है।

उन्नत किस्मों के आधार पर एक हेक्टेयरTori ki khetiसे 250 क्विंटल की फसल प्राप्त की जा सकती है। तोरई का बाजार भाव 5 से 10 रुपये प्रति किलो के बीच है और इस वजह से किसान भाई इसकी एक बार की फसल से 1.25 लाखरुपये तक की कमाई कर अच्छा रिटर्न कमा सकते हैं.

Tori ki kheti Kaise Kare FaQ

Q. तोरई कौन कौन से महीने में लगाई जाती है?

Ans. फरवरी-मार्च व जून-जुलाई में

Q. तोरई का सबसे अच्छा बीज कौन सा है?

Ans. पूसा चिकनी, पूसा स्नेहा, पूसा सुप्रिया, काशी दिव्या, कल्याणपुर चिकनी,

Q. Tori ki khetiका बीज कितने दिन में उगता है?

Ans. बुवाई से लगभग 6 से 8 दिन में तोरई के बीज अंकुरित होते हैं।

Q. तोरई का दूसरा नाम क्या है?

Ans. तोरी या तुराई

Q. तोरी के पौधे लगाने के लिए कितनी दूर है?

Ans. पंक्तियों में 6 की दूरी पर पौधों को 18-24 इंच की

Q. तोरई में कौन से विटामिन होते हैं?

Ans. विटामिन C, मैग्नीशियम, आयरन, रिबोफ्लेविन, जिंक और थियामिन

Q. तोरई का दूसरा नाम क्या है?

Ans. झिंग्गी

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